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  • श्रीमद्भगवद्गीता:जीवन-पथ प्रदीपिका - 3
    Special Price ₹99.00 Regular Price ₹200.00

    मुख्य विषय: यह अध्याय जीवन में कार्य और कर्तव्य के महत्व पर चर्चा करता है, ज्ञान और क्रिया के मूल्य पर जोर देता है।
    मुख्य अवधारणाएँ: इसमें ज्ञान और क्रिया के बीच संबंध, कर्तव्यों का पालन करने की आवश्यकता, और ज्ञानी और अज्ञानी कार्यों के बीच अंतर शामिल हैं।
    दार्शनिक अंतर्दृष्टि: पाठ में कर्तव्य के बारे में दार्शनिक विचार, निःस्वार्थता की भूमिका, और व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण पर कार्यों के प्रभाव का अन्वेषण किया गया है।
    व्यावहारिक मार्गदर्शन: यह कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निभाने और किसी के कार्यों के नैतिक निहितार्थ पर व्यावहारिक सलाह प्रदान करता है।

  • श्रीमद्भगवद्गीता:जीवन-पथ प्रदीपिका - 5
    Special Price ₹99.00 Regular Price ₹200.00

    दस्तावेज़ में कर्म और कर्म योग की अवधारणाओं का परिचय दिया गया है, जो कर्म (क्रिया) और कर्म योग (क्रिया का योग) के महत्व को रेखांकित करता है, और यह बल देता है कि परिणामों से अनासक्त होकर कर्तव्यों का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। एक सच्चे कर्म योगी की विशेषताओं का वर्णन करते हुए, यह बताया गया है कि एक सच्चा कर्म योगी वह होता है जो निस्वार्थ भाव से कार्य करता है और परिणामों से अलग रहता है। ज्ञान और समत्व के महत्व को उजागर करते हुए, पाठ में एक संतुलित मन की स्थिति प्राप्त करने और कर्तव्य की भावना के साथ कार्य करने के लिए ज्ञान और समत्व की महत्वपूर्णता को दर्शाया गया है। अंतिम लक्ष्य समर्पित और निस्वार्थ कार्य के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति की स्थिति प्राप्त करना है।

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